The Old Ink Library की शुरुआत कैसे हुई?
नमस्कार साथियो!
मेरा नाम राजीव शर्मा है। The Old Ink Library के इस ब्लॉग पर मैं आपका स्वागत करता हूं। आकार और संसाधनों के मामलों में यह एक छोटी लाइब्रेरी है लेकिन हमारा मकसद यकीनन बड़ा है। वह है — यह दुनिया हमें जिस रूप में मिली है, उसे और सुंदर और बेहतर जगह बनाना।
साल 2000 की सर्दियों में कुछ किताबों और बिना किसी नाम के इसकी शुरुआत मैंने एक छोटे-से कमरे में की थी। तब से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है लेकिन मैं मानता हूं कि कुछ चीजें वक्त बदलने के बावजूद कभी नहीं बदलतीं। शिक्षा का उजाला एक ऐसी ही शक्ति है।
मैंने इसकी स्थापना मेरे गांव कोलसिया में की थी जो राजस्थान के झुंझुनूं जिले में स्थित है। अब मैं लाइब्रेरी को नए रूप में पेश कर रहा हूं, जिसमें इंटरनेट की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी, ताकि यह उन लाखों बच्चों तक भी पहुंच सके जिनके बस्तों में कॉपी-किताबें, पेंसिल के छिलके, रबर के टुकड़े और फिरकी के अलावा ढेरों सपने कैद हैं।
इस लाइब्रेरी के नामकरण के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। स्कूली पढ़ाई के दौरान हमारे अंग्रेजी के शिक्षक श्री सरदार सिंहजी इस बात पर खास जोर देते थे कि हर विद्यार्थी सिर्फ फाउंटेन पेन से ही लिखे। बॉलपेन की लिखावट देख आप नाराज हो जाते थे।
एक दिन आपने हमें बताया कि इसकी वजह क्या है। दरअसल आपका मानना है कि स्कूली पढ़ाई के दौरान जो बच्चे फाउंटेन पेन से लिखते हैं, उनकी लिखावट अच्छी होने की संभावना ज्यादा होती है। यह बात विभिन्न शोध में भी साबित हो चुकी है।
गुरुजी कलम के साथ ही स्याही के चयन में भी सावधानी बरतने के लिए कहते थे। फीकी और हल्की स्याही की लिखावट देख उसमें सुधार करने के लिए कहते। आपने एक दिन टिप्पणी की थी कि अच्छी लिखावट के लिए पुरानी स्याही का इस्तेमाल करो। अक्षर इतने खूबसूरत और स्याही इतनी असरदार हो कि वर्षों बाद भी वे हर किसी का दिल जीत सकें। ... निश्चित रूप से आपकी शिक्षाएं इस लाइब्रेरी के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
मैं भारत के हर स्कूल के हर उस बच्चे तक इस लाइब्रेरी को पहुंचाना चाहता हूं जिनकी अंगुलियों से नई दुनिया का भविष्य लिखा जाएगा। मेरी कोशिश रहेगी कि इसे लगातार अधिक उपयोगी बनाया जाए। इस लाइब्रेरी को मैं एक ऐसे शिक्षण संस्थान के रूप में विकसित करना चाहता हूं जहां मोटी व उबाऊ किताबें और पीट-पीटकर पढ़ाने वाले अध्यापक न हों। मेरा लक्ष्य सबसे बड़ी लाइब्रेरी बनाना नहीं है लेकिन मैं एक अच्छी लाइब्रेरी जरूर बनाना चाहता हूं। आपकी शुभकामनाओं की हमेशा जरूरत रहेगी।
एक दिन आपने हमें बताया कि इसकी वजह क्या है। दरअसल आपका मानना है कि स्कूली पढ़ाई के दौरान जो बच्चे फाउंटेन पेन से लिखते हैं, उनकी लिखावट अच्छी होने की संभावना ज्यादा होती है। यह बात विभिन्न शोध में भी साबित हो चुकी है।
गुरुजी कलम के साथ ही स्याही के चयन में भी सावधानी बरतने के लिए कहते थे। फीकी और हल्की स्याही की लिखावट देख उसमें सुधार करने के लिए कहते। आपने एक दिन टिप्पणी की थी कि अच्छी लिखावट के लिए पुरानी स्याही का इस्तेमाल करो। अक्षर इतने खूबसूरत और स्याही इतनी असरदार हो कि वर्षों बाद भी वे हर किसी का दिल जीत सकें। ... निश्चित रूप से आपकी शिक्षाएं इस लाइब्रेरी के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
मैं भारत के हर स्कूल के हर उस बच्चे तक इस लाइब्रेरी को पहुंचाना चाहता हूं जिनकी अंगुलियों से नई दुनिया का भविष्य लिखा जाएगा। मेरी कोशिश रहेगी कि इसे लगातार अधिक उपयोगी बनाया जाए। इस लाइब्रेरी को मैं एक ऐसे शिक्षण संस्थान के रूप में विकसित करना चाहता हूं जहां मोटी व उबाऊ किताबें और पीट-पीटकर पढ़ाने वाले अध्यापक न हों। मेरा लक्ष्य सबसे बड़ी लाइब्रेरी बनाना नहीं है लेकिन मैं एक अच्छी लाइब्रेरी जरूर बनाना चाहता हूं। आपकी शुभकामनाओं की हमेशा जरूरत रहेगी।
लाइब्रेरी से संपर्क के लिए :
हमें ईमेल करें — write4thelight@gmail.com
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