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मैं चाहता हूं कि मेरे देश की बेटियां अब गुड़िया नहीं, कलम और किताब मांगें

कैसे हैं साथियों? बहुत दिनों से मैं आपके बीच एक बात रखना चाहता था। इसके लिए मैंने कई बार इरादा किया और कई बार बदला। मैंने इरादा इसलिए बदला, क्योंकि मैं सोच रहा था कि कहीं मेरा मखौल तो नहीं उड़ाया जाएगा! आखिरकार मैंने तय किया कि यह बात कहनी चाहिए। यदि इसके एवज में मेरा मखौल उड़े तो उसके लिए मैं तैयार हूं। आज मैं आपको मेरे जीवन की एक घटना बताना चाहता हूं। शायद 2004 या उससे कुछ पहले की बात है। मैं मेरे गांव कोलसिया के जिस राजकीय विद्यालय में पढ़ता था, वहां एक छोटी लाइब्रेरी भी थी। मैं वहां से एक किताब लेकर आया जिसमें बहुत ही खूबसूरत कहानी थी। कहानी कुछ इस तरह थी कि किसी देश में एक बच्चा बेहद मुश्किल हालात में पढ़ाई कर रहा था। उसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। किताबें खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। सर्दियों का मौसम उसे बहुत परेशान करता था क्योंकि जो इकलौता पुराना कोट वह पहना करता, कई जगहों से फट चुका था। बहुत मुश्किल हालात में भी उसने इरादा नहीं बदला। अध्ययन के प्रति उसका रुझान कम नहीं हुआ। उसे तकलीफ में देख एक औरत ने उसकी मदद करनी चाहिए। एक रोज वह ​कुछ किताबें और कुछ रकम (शायद 20 डॉलर